पारस | Poem on paras
पारस
( Paras )
करामात होती पारस में जब लोहे को छू लेता है।
कुदरत का खेल निराला धातु स्वर्ण कर देता है।
छूकर मन के तारों को शब्द रसीले स्नेहिल भाव।
रसधार बहती गंगा सी रिश्तो में हो नेह जुड़ाव।
प्यार भरे दो बोल मीठे पारस सा असर दिखाते हैं।
कल तक थे बैरी हमारे घनिष्ठ मित्र बन जाते हैं।
शब्दाक्षर जब भाव भरे स्वर्णाक्षर हो दमकते हैं।
मुस्कानों के मोती बांटे दुनिया में खूब चमकते हैं।
कर्मों से छवि सुहानी उन्मुक्त गगन उड़ान भरो।
सेवा सत्कर्मों से प्यारे दुनिया में पहचान करो।
जिस पर रख दूं हाथ आनंद मगन हो जाता है।
पारस पत्थर सा जादू यारो मुझको भी आता है।
तराश सको प्रतिभा कोई कंकड़ को सोना कर दे।
अनुभवों भरा खजाना सत्य स्वप्न सलोना कर दे।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )