चांद में चांद | Chand Kavita
चांद में चांद
( Chand mein chand )
दोषारोपण चाँद को स्वयं बनी चकोर है
अवसर की तलाश में ताकति चहुओर है
प्रियतम रिझाने को सजने-संवरने लगी
आभा लखि आपनी हुई आत्मविभोर है।
पायजेब की घुघरू छनकाती छन-छन
चूड़ियाँ कलाईयों की खनक बेजोर है।
बिंदिया ललाट की चमकती सितारों सी
गुलाबी इत्र खुशबू की नही कोई जोर है।
श्रृंगारित रूप-रंग देख रतिराज दंग भयो
रति सौतन डाह जलत करे तोर मोर है।
हवा की सरसराहट में पिय की बाट जोहे
चहुँओर शोर उठा कि चोर आया चोर है।
तन-मन की प्यास उसकी अधूरी रह गई
रह गई चांद में चांद ढूँढती हो गई भोर है।