तब तुम कविता बन जाती हो
( Tab tum kavita ban jati ho )
झरनें की कल कल में,
खग चहके जल थल में,
सूर्य किरण तेज़ फैलाये
पवन भीनी सुगंध बहाये
जब प्रकृति सुंदरता बिखराती हो,
तब तुम कविता बन जाती हो ।
कलम के सहारे,
मेरे दिल पात्र में उतर आती हो !!
संध्या में रवि डूबे,
चंद्र निशा में झूमें
तारक दीप्ती फैलाएं
नभ रौशनी में नहाएं
जब चकोर चांद पर इतराती हो,
तब तुम कविता बन जाती हो ।
कलम के सहारे,
मेरे दिल पात्र में उतर आती हो !!
डी के निवातिया