और कितना गिरेगा तू मानव | Mannav kavita
और कितना गिरेगा तू मानव ?
*****
और कितना गिरेगा तू मानव?
दिन ब दिन बनते जा रहा है दानव।
कभी राम कृष्ण ने जहां किया था दानवों का नाश!
उसी भूमि के मानवबुद्धि का हो रहा विनाश।
जहां बुद्ध ने दानवों को भी मानवी पाठ पढ़ाए थे,
अष्टांगिक मार्ग पर चलना सिखाए थे।
महावीर ने भी सत्य अहिंसा के मार्ग बतलाए थे,
जीवों के प्रति दया भाव सिखलाए थे ।
बुद्ध महावीर राम कृष्ण की उसी धरती पर-
आज मानव दिशाहीन हुआ जा रहा है,
विवेकहीन हो दुराचारी,व्याभिचारी हुआ जा रहा है।
घमंड है प्रबल,
कुबुद्धि हो गई है सबल।
हो रहे सब आत्ममुग्ध और मक्कार
ऐसे मनुष्यों पर है धिक्कार ।
सज्जन नहीं कर पा रहे इनका तिरस्कार,
अल्पसंख्यक जो हो गए हैं,
भयभीत हो गए हैं;
दुराचारियों की कृपा पर जी रहे हैं।
कुछ ने भयाक्रांत हो, पाला बदल लिया है,
सत्य की राह छोड़ शक्ति से जा मिला है।
कालचक्र गतिमान है,
समय न एक समान है।
फिर किस चीज का तुम्हें गुमान है?
कर्म ही कलयुग में महान है।
कर्मानुसार भोगना पड़ेगा,
कर्मफल भोगे बिना है मुक्ति कहां?
योनि योनि भटके फिरोगे, यहां से वहां।
चेतो अभी से जागो,
सन्मार्ग अपना लो।
इसी में भलाई है,
वरना आगे रूलाई ही रुलाई है।
***
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।