भीनी भीनी चांदनी | Chhand bhini bhini chandni
भीनी भीनी चांदनी
( Bhini bhini chandni )
विधा मनहरण घनाक्षरी
उज्जवल उज्जवल, भीनी भीनी मद्धम सी।
दूधिया सी भीगो रही, दिव्य भीनी चांदनी।
धवल आभा बरस, सुधा रस बांट रही।
आनंद का अहसास, देती भीनी चांदनी।
चांद यूं छलका रहा, अमृत रस भंडार।
हर्ष खुशी मोद करे, दुलार भीनी चांदनी।
खिल गई वादियां भी, महका चमन सारा।
प्रीत उर आंगन में, लाई भीनी चांदनी।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )