कुंठायें जीवन का अवसान
( Kunthaye jeevan ka avsan )
चिंता चिता समान है, कुंठायें हैं अवसान।
जीवन को आनंद से, जरा भर लीजिए।
सब को खुशी बांटिये, नेह मोती अनमोल।
घुटन भरे कुंठाएं, थोड़ा प्रेम कीजिए।
हर्ष मौज आनंद की, गर चाहो बरसात।
ईर्ष्या द्वेष लोभ मद, जरा त्याग दीजिए।
छल कपट दंभ हो, जहां घृणा तिरस्कार।
कुंठाएं घर बनाले, गम थोड़ा पीजिए।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )