अजीब रंग में बहार गुजरी | Bahar
अजीब रंग में बहार गुजरी
( Ajeeb rang mein bahar gujri )
अजीब रंग में अब के बहार गुजरी।
आशाएं ले डूबी साल बेकार गुजरी।
मौसम भी रहा मौन हवाएं थम सी गई।
हमसे पूछे कौन फिजाएं खिल ना रही।
देख कर भी अंजान क्या जमाना हुआ।
टूटे दिलों का आज नया फसाना हुआ।
घटाएं भूल गई अब उमड़ घुमड़ छाना।
प्रीत की फुहार कहां गई सावन आना।
वक्त लोगों को कहां करें बातें सुहानी।
भूल जाएंगे बच्चे क्या होते दादी नानी।
सद्भाव मोती अनमोल लुटाना प्यार से।
बदलेगा जमाना सावन बरसे फुहार से।
रुत भरी मौसमी हवाएं कहां से गुजरी।
महफिले महकी समां में रवानी उतरी।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )