बुद्ध होना चाहती हूं
( Buddh hona chahti hoon )
सब त्याग दिया जिसने पल भर में,
हर रिश्ते के मोह पाश से मुक्त होकर
मैं बुद्ध होना चाहती हूं!
बुद्ध शरण में जो भी आए
पार भौतिक संसार से पाएं
पीड़ा में भी मधुरता झलके
सारे दुख फूल से बन जाए ।।
मांगना क्या अब इस जीवन में ईश से,
क्यूं अनुचित इच्छाओं का भार बढ़ाऊ
जिस कर्म से प्रसन्न रहें ये मन ,पाप रहित
बस वही कर्म पथ का सदमार्ग चाहती हूं।।
मन के नेत्रों से देखा ये संसार
तब सिर्फ बुद्ध ही स्मरण आएं,
ध्यान , तप, जप मोह सब त्याग
ये देह परमात्मा में विलीन हो जाए ।।
मैं भी सद्गति चाहती हूं
आत्म से परमात्मा तक हो
ज्ञान का प्रकाश अब
में बुद्ध होना चाहती हूं।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश
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