उड़ान की ख्वाहिशों मे | Udaan ki Khwahishon me
उड़ान की ख्वाहिशों मे
( Udaan ki khwahishon me )
उड़ान की ख्वाहिशों मे
छोड़नी पड़ जाती है जमीन भी कभी कभी
महज हौसलों के करीब ही
हर मंजिल नही होती….
मौका भी देता है वक्त
आ जाते हैं आड़े उसूल तो जमाना कभी
कामयाबी के सफर मे
तोड़ने भी होते हैं सिद्धांत
लोगों के तो खुद के भी कभी कभी…
मन माफिक
न घर बनता है न श्रृंगार
रह ही जाती है कमी कुछ न कुछ
और यही कमी देती है प्रेरणा
कुछ और कर गुजरने की…
सीखना होता है स्वयं से ही
करना भी खुद को ही होता है
औरों का साथ उनकी सोच से है
मंजिल का उद्देश्य
तो खुद को ही पूरा करना है..
जिन्हे रहती है उम्मीद और की
वे भटक ही जाते हैं चौराहे पर
रास्ता तो एक ही पहुंचता है मुकाम पर
जिसका चयन आपसे तय होता है ….
( मुंबई )
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