भाई दूज | Bhai Dooj
भाई-दूज
( Bhai-dooj )
( 2 )
बहन इक भाई के जीवन में रिश्ते कई निभाती है,
बन के साया मां की तरह हर विपदा से बचाती है,
कभी हमराज़ बन उसके राज़ दिल में छिपाती है,
जुगनू बनके अंधेरों में सफ़र आसां बनाती है !!
बहन जब भाई के मस्तक तिलक काढ़ती है तो,
दुआ बस एक ही अपने प्रभू से मांगती है वो,
सलामत हो सदा भैया ना हो कोई कष्ट जीवन में,
बलाएं उसकी लेने खुशियां खुद की वारती है सो !!
तिलक माथे पे कर उसकी जीत की भावना भाती है,
अक्षय सुख समृद्धि के भाव से अक्षत लगाती है,
श्रीफल, कुंकुम, अक्षत, जल, आरती और राखी,
मंगल हो भाई का शुभ द्रव्यों से थाल सजाती है!!
लडकपन की सभी यादें वो बचपन की हर शैतानी,
पहले तोहफा तभी बंधेगी राखी की वो मनमानी,
छूआकर मिठाई पूरी खाने की वो ज़िद करना,
ना मानूं बात इक भी तो बहाना आंखों से पानी!
अग़र हो दूर ये त्यौहार फिर खाली सा रहता है,
प्रेम का इक ही आंसू दोनों की आंखों से बहता है,
बहन की भेजी मौली भी बंधी पूरे साल रहती है,
कि हूं मजबूत सबसे, कच्चा सा धागा ये कहता है !
विरेन्द्र जैन
( नागपुर )
—0—
( 1 )
देखो फिर आया भाई-दूज का त्यौहार |
देखो कैसे उमड़ रहा भाई-बहन का प्यार |
चाहे दूर रहे मेरा भाई या रहे पास |
रहती हर बहन को ईश्वर से बस यहीं हरदम आस |
जहाँ भी रहे उसका भाई |
सदा रहे खुशहाल |
भाई भी यहीं चाहे हरदम |
ऐसी हो उसके बहना की तकदीर |
कि कभी न आए उसकी आँखों में नीर |
जब न पहुँच पाता कोई भाई,
भाई-दूज पर अपनी बहना के द्वार |
करती रहती बहना हर पल उसका इंतजार |
जब भी आता भाई-बहन का यह त्यौहार |
लेकर आता अपने संग बचपन की यादें हजार |
कोई बहना मना रही अपने भाई संग यह प्यारा त्यौहार |
देखो कैसे कर रही आशीषों की बौछार,
अपने भाई की आरती उतार |
बदले में दे रहा वचन भाई भी ,
रक्षा करूँगा मैं बहना तेरी हरदम हर हाल |
नहीं रहती चाह किसी हीरे ज्वाहारात की |
बस यही चाह हैं हरदम,
अमर बेल सा बढ़ता रहे हम भाई-बहन का प्यार |
ऐसा होता भाई-बहन का प्यार |
देखो आया भाई-दूज का त्यौहार |
मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)