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अच्छी नहीं होती खामोशी | Khamoshi

अच्छी नहीं होती खामोशी

( Achi nahi hoti khamoshi )

 

चुप्पी साधे क्यों बैठे हो, गायब क्यों सारी गर्मजोशी।
विद्वानों की सभा भरी, अच्छी नहीं लगती खामोशी।

कहां गए वक्तव्य सुहाने, कहां वो कहानी नई नई।
गीतों की रसधार कहां वो, मधुरम बातें कहां गई।

मौन साधने वालों सुन लो, बाधाओं व्यवधानों सुन लो‌।
धीर-वीर बलवानो सुन लो, मतलबी इंसानों सुन लो।

जो लूटाए प्रेम मोती जग में, पाता है वही ताजपोशी।
अन्याय देख चुप रहना, अच्छी नहीं होती खामोशी।

हौसला हिम्मत जुटाओ, सच की खातिर लड़ना सीखो।
लेखनी का जादू चलाओ, नव कीर्तिमान गढ़ना सीखो।

तोड़ मौन विघ्न बाधाएं, खुशियों के दीप जलाओ ना।
प्यार के अनमोल मोती, वाणी के पुष्प खिलाओ ना।

प्रेम की रसधार बहाकर, शब्द सुधा बरसाओ ना।
रिश्तों की फुलवारी महके, गीत खुशी के गाओ ना‌

अच्छी नहीं होती खामोशी, संशय दूर करो मन का
खुशबू फैलाओ प्रेम की, दुख दूर करो जन जन का।

 

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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