एक नदी सी बहे कपूरी | Ek Nadi si Bahe Kapuri
एक नदी सी बहे कपूरी
( Ek nadi si bahe kapuri )
लिखा भाग का पड़े भोगना ,
बोलो किससे कहे कपूरी .
सारे जग के बोली ताने ,
गुपचुप रहकर सहे कपूरी .
गर्द मर्द ली छीन राम ने ,
दुर्दिन ये काटे ना कटते .
खल कामी दुखिया के दर से ,
नहीं हटाए से भी हटते .
लाचारी पर्वत से भारी ,
बोझा कितना सहे कपूरी .
छुटकी तो बीमार पड़ी है ,
छुटके को भी हुई निवाई .
पिला रही है कडुआ काढ़ा ,
बता बता कर इन्हें दवाई .
जब तक जीना , तब तक सीना ,
कैसे बैठी रहे कपूरी .
काम चले ना महँगाई में ,
हो कैसे अब जोड़ा -जोड़ी .
उठ जाती हैै साथ भोर में ,
मरे नहीं ये भूख निगोड़ी .
गुमसुम रहती कुछ ना कहती ,
एक नदी सी बहे कपूरी
राजपाल सिंह गुलिया
झज्जर , ( हरियाणा )