बचपन की बातें : कुछ सुनहरी यादें
बचपन की बातें
( Bachpan ki baatein )
काग़ज़ की नाव बना फिर से
तैराए,
बारिश के पानी में छबकियां
लगाए।
दरवाजे के पीछे छुपकर सबको
डराए,
चलो फिर से एक बार बच्चे बन
जाए।
पापा की कमीज पहन कर हाथ
छुपाए,
इस कला को हम लोगों को जादू
बताएं।
खुद भी हँसे सभी को चुटकुले
सुनाए,
चलो फिर से एक बार बच्चे बन
जाए।
एक दूसरे को देखें टकटकी
लगाए,
संतोलियों छुपन-छुपाई में रम
जाए।
कुर्सी पर कुर्सियों को जमा बैठ
जाएं,
चलो फिर से एक बार बच्चे बन
जाए।
कभी दादा कभी मम्मी के पीछे छुप
जाए,
कभी भूत का मुखौटा पहन सबको
डराए।
जोर जोर से हंसें और खिल
खिलाएं,
चलो फिर से एक बार बच्चे बन
जाए।
कुछ पल के लिए बड़प्पन अपना भूल
जाए,
लोक लाज की चिंता से बाहर आ
जाए।
पुरानी यादों में फिर हम लौट
जाए,
चलो फिर से एक बार बच्चे बन
जाए।
चलो फिर से एक बार बच्चे बन
जाए।
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )
#sumitkikalamse