नये रंग भरने वाला था | Ghazal Naye Rang
नये रंग भरने वाला था
( Naye Rang Bharne Wala Tha )
हमारा जाम मुहब्बत से भरने वाला था
कोई उमीद की हद से गुज़रने वाला था
जवाब उस से मुहब्बत का किस तरह मिलता
वो गुफ़्तगू भी सवालों में करने वाला था
ये एक बात ही ज़ाहिर है उसकी आंँखों से
ज़रा सी देर में सब कुछ बिखरने वाला था
समझ में आ गई गहराई मेरी बातों की
वो अपनी बात से वर्ना मुकरने वाला था
बहुत खली है ज़माने को बात इतनी सी
कोई ग़रीब मुक़द्दर संवरने वाला था
उसी के पीछे पड़े हैं सितम ज़माने के
जो लेके प्यार का पैकर उतरने वाला था
चला है वोही चराग़ – ए – वफ़ा जलाने को
मिज़ाज जिसका हवाओं से डरने वाला था
बचा हूँ इस लिए झुकना था मेरी आदत में
वो तीर मेरे ही सर से गुज़रने वाला था
गया है रूठ के मुझ से वही बशर साग़र
जो अंजुमन में नये रंग भरने वाला था
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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