मेरे ख़ुलूस को | Mere Khuloos ko
मेरे ख़ुलूस को
मेरे ख़ुलूस को चाहो अगर हवा देना
मेरे ख़िलाफ़ कोई वाक्या सुना देना
कभी तो आके मेरी ख़्वाहिशें जगा देना
वफ़ा शियार हूँ तुम भी मुझे वफ़ा देना
तमाम उम्र ये मंज़र रहेगा आँखों में
नज़र मिलाते ही तेरा ये मुस्कुरा देना
जिधर भी देखिए रुसवाइयों के पहरे हैं
मेरे ख़ुतूत मेरे साथ ही जला देना
मैं बढ़ रहा हूँ किसी अजनबी सफ़र की तरफ़
चराग़ तुम ही कोई राह में जला देना
वफ़ा का उसकी मुझे ऐतबार आ जाये
सबूत ऐसा मेरे दोस्त तुम दिखा देना
बहुत हैं दूर क़दम मेरे अपनी मंज़िल से
अज़ीज़ों तुम ही मेरा हौसला बढ़ा देना
कहीं हैं ग़ज़लें तुम्हारे ही प्यार में साग़र
इन्हें कभी तो मुहब्बत से गुनगुना देना
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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