दिल में हमारे आज भी

दिल में हमारे आज भी

( ‘वाचाल’ ग़ज़ल
मतलआ छोड़कर सारे अश्आर तिटंगे )

दिल में हमारे आज भी अरमान पल रहा है
यूँ मानिए कि दिल को ये दिल ही छल रहा है

रंगे-निशात झेला बारे-अलम उठा कर
ना जाने किस बिना पर ये साँस चल रहा है
जुड़ता है टूट-टूट कर फ़िर-फ़िर संभल रहा है

वो पूछते हैं अक्सर क्या हाल है तुम्हारा
कैसे उन्हें बताएँ के वक़्त टल रहा है
बुझती हुई शमा पे परवाना जल रहा है

मस्ती में दे रहा था जो रौशनी अभी तक
वो देखिये उफ़ुक पर अब चाँद ढल रहा है
हारा थका मुसाफ़िर ज्यों हाथ मल रहा है

पाला है हमने दिल को पहलू में कैसे-कैसे
उनसे मिली नज़र क्या उनको मचल रहा है
जैसे कि बस उन्हीं का इसपे दखल रहा है

अहसान मुफलिसी का ये दिन दिखाए यारो
हर शख़्स दूर ही से रस्ता बदल रहा है
जतला रहा है ऐसा जैसे टहल रहा है

घर तो जलाया उनका बेख़ौफ़ दरिंदों ने
फ़िर क्यों धुआँ हमारे घर से निकल रहा है
काहे हमारे जिस्म में सीसा पिघल रहा है

देशपाल सिंह राघव ‘वाचाल’
गुरुग्राम महानगर
हरियाणा

यह भी पढ़ें:-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *