हमने तो सारे दाँव जवानी पे रख दिये
हमने तो सारे दाँव जवानी पे रख दिये
राजा पे रख दिए न तो रानी पे रख दिये
हमने तो सारे दाँव जवानी पे रख दिये
सागर, शराब, जाम कसौटी पे रख दिये
उसने हिज़ाब जब मेरी मर्ज़ी पे रख दिये
मय-ख़्वार जब शराब से तौबा न कर सका
इल्ज़ाम मयकशी के उदासी पे रख दिये
सादा मिज़ाजी शहर में अब मिलती है कहाँ
जीने के क़ायदे ही अँगीठी पे रख दिये
बेशक लगा के हाथ में मेहँदी को आपने
तारे जहाँ के मेरी हथेली पर रख दिये
सारे गुनाह जो किये अहदे-वफ़ा के नाम
बच्चों ने वालिदैन की पगड़ी पे रख दिये
मीना कहाँ नसीब है मुफ़लिस को अब ख़ुदा
उसने तमाम सजदे ही रोटी पे रख दिये
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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