हर बुराई को न यूं अंजाम दो | Emotional ghazal
हर बुराई को न यूं अंजाम दो
( Har burai ko na yoon anjaam do )
हर बुराई को न यूं अंजाम दो
देश में अच्छाई का पैग़ाम दो
दो गवाही सच के हक़ में ए हबीब
यूं नहीं झूठा मुझपे इल्जाम दो
दी वफ़ाये हर घड़ी मैंनें तुम्हे
यूं नहीं तुम बेवफ़ा का नाम दो
यूं न लो पैसे जियादा हूँ ग़रीब
की सही से दाल आटा दाम दो
जो किसी को भूल जा “आज़म” सदा
एक पीने को ऐसा वो जाम दो