आदमी की पहचान!
आदमी की पहचान!
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नहीं है आसान
आदमी की पहचान!
भाल पर नहीं
उसके कोई निशान
कहने को तो
साथ खड़ा है
दिख भी रहा है
पर दरअसल वह
गिरने का इंतजार कर रहा है
गिरने पर
उठाने का प्रयास नहीं करता,
एक ठोकर मार आगे है बढ़ता!
आपके खड़े होने से उसे ईर्ष्या है,
उसकी हंसी सिर्फ मिथ्या है।
वह कभी साथ नहीं है
सदियों से यही देखी जा रही है
यही रीति है
किसी को किसी से न प्रीति है।
ईर्ष्या है जलन है द्वेष है,
चाहे रहे वह किसी भेष है।
प्यार अपनापन तनिक न शेष है,
सिर्फ रेस ही रेस है !
यही पहचान-
समय पटल पर छोड़ता रहा है इंसान,
जाने दुनिया जहान;
वक्त ही कराता है-
उसकी बेहतर पहचान।
आसान नहीं आदमी की पहचान!
जो पहचान की दावा करे-
मूर्ख उसे तू जान,
नादान है वह इंसान।