आगों में | Aagon mein kavita
आगों में
( Aagon mein )
कभी तानों में कभी रागों में ।
हम तो उलझे ये गुना भागों में ।।
आँधियों से बुझे नहीं दीपक ।
तेल था ही नहीं चिरागों में ।।
वक़्त में सील नहीं पाया कपड़ा ।
लड़ाई छिड़ रही थी धागें में ।।
तेज जेहन था पर रहे पीछे ।
क्योंकि पैदा हुये अभागों में ।।
आह ठंडी भी हम रहे भरते ।
और कूदे बला की आगों में ।।
लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
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