Aagon mein kavita

आगों में | Aagon mein kavita

आगों में

( Aagon mein )

 

कभी  तानों  में  कभी  रागों  में ।
हम तो उलझे ये गुना भागों में ।।
आँधियों से बुझे नहीं दीपक ।
तेल था ही नहीं चिरागों में ।।
वक़्त में सील नहीं पाया कपड़ा ।
लड़ाई  छिड़  रही  थी  धागें में ।।
तेज  जेहन  था  पर रहे पीछे ।
क्योंकि पैदा हुये अभागों में ।।
आह ठंडी भी हम रहे भरते ।
और कूदे बला की आगों में ।।

 

✍?

 

लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

यह भी पढ़ें : –

मन का आंगन | Man ka Aagan Kavita

 

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