आइए प्रभु आइए | Chhand
आइए प्रभु आइए
( Aaiye Prabhu Aaiye )
मनहरण घनाक्षरी छंद
लबों की हो मुस्कान भी
पूजा और अजान भी
अंतर्यामी प्रभु मेरे
दौड़े-दौड़े आइए
जग पालक स्वामी हो
हृदय अंतर्यामी हो
हाल सारा जानते
देर ना लगाइये
पलके अब खोल दो
सबको आ संबल दो
पीर भरे मेंघ छाये
विपदा निवारिये
जन-जन पीर हरो
केशव ना धीर धरो
करुण पुकार सुनो
अब प्रभु आइए
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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