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नवरात्रि पर्व ( चैत्र ) सप्तम दिवस
नवरात्रि पर्व ( चैत्र ) सप्तम दिवस हिल – मिल नवरात्रि पर्व का उत्सव मनाएं ।भुवाल – माता के सब मिल मंगल गीत गाएं।श्रद्धा और समर्पण का ले संबल चरण बढ़ायें।भुवाल माता के स्मरण से अध्यात्म दीप जलायें ।सागर में लहरें ज्यों अहं भावना का विलय करें ।आत्म – पक्ष के सही लक्ष्य को अपनायें…

मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां
मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां।। सामना होश से ग़र करेगा यहां।। चैन पाते नहीं जिंदगी में कभी। वैर जिनके दिलों में पलेगा यहां।। मौज बेशक मना लो भले लूट से। ज़र न ज्यादा दिनों वो टिकेगा यहां।। दिल कभी भी किसी का…

मैं विकलांग नहीं हू | Main Viklang nahi Hoon
मैं विकलांग नहीं हू ( Main viklang nahi hoon ) कुछ लोग हँसते हैं, जबकि अन्य बस देखते रहते हैं। कुछ लोग सहानुभूति भी रख सकते हैं, लेकिन वास्तव में किसी को परवाह नहीं है। मेरे पैर नहीं हैं, और स्थिर नहीं रह सकता. हाँ, मैं अलग हूँ, लेकिन मैं विकलांग नहीं हूं. कुछ…

ग़रीब स्त्री का करवाचौथ | Karva chauth poem
ग़रीब स्त्री का करवा चौथ ( Garib stree ka karva chauth ) सुबह से भूखी-प्यासी रहकर ही पहनकर फटे-पुराने चीर, करती बेसुहाता-सा हार-श्रृंगार, अनमने मन से काम पर चली जाती, दिन भर दौड़-धूप करती फिर दोपहर बाद ही घर चली आती। घर आकर बच्चों और सास-ससुर को खाना खिलाती, पुनः सज-संवरकर शाम…

मीठी वाणी मीठी बोली | Kavita
मीठी वाणी मीठी बोली ( Mithi vani mithi boli ) एक सैलानी मुझसे बोला क्या करते हो गदेना, गुठियार में ऐसा क्या है यार तेरे गढ़वाल में। मुस्कुराते हुए मैंने कहा मीठी वाणी मिट्ठी पाणी है मेरे गढ़वाल में। हिमालय का चौखंबा बसा है मेरे पहाड़ में 52 गढ़ है मेरे गढ़वाल में। मां…

ये मन्नतों के धागे | Ye Mannaton ke Dhage
ये मन्नतों के धागे ( Ye mannaton ke dhage ) मैं बांध आई थी, एक मन्नत का धागा, मंदिर के द्वार पर। जहाँ न जाने कितनों के द्वारा मांगी गईं थी और मांगी जा रही थी हजारों मन्नतें, जानते थे तुम मेरी पीड़ा को, इसलिए कहते थे बांध आओ तुम भी एक मन्नत का…

नवरात्रि पर्व ( चैत्र ) सप्तम दिवस
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मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां
मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां मुश्किलों का न डर फिर रहेगा यहां।। सामना होश से ग़र करेगा यहां।। चैन पाते नहीं जिंदगी में कभी। वैर जिनके दिलों में पलेगा यहां।। मौज बेशक मना लो भले लूट से। ज़र न ज्यादा दिनों वो टिकेगा यहां।। दिल कभी भी किसी का…

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ग़रीब स्त्री का करवाचौथ | Karva chauth poem
ग़रीब स्त्री का करवा चौथ ( Garib stree ka karva chauth ) सुबह से भूखी-प्यासी रहकर ही पहनकर फटे-पुराने चीर, करती बेसुहाता-सा हार-श्रृंगार, अनमने मन से काम पर चली जाती, दिन भर दौड़-धूप करती फिर दोपहर बाद ही घर चली आती। घर आकर बच्चों और सास-ससुर को खाना खिलाती, पुनः सज-संवरकर शाम…

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