आज यहां उल्फ़त की टूटी डाली है | Ghazal
आज यहां उल्फ़त की टूटी डाली है
( Aaj yahan ulfat ki tuti dali hai )
आज यहां उल्फ़त की टूटी डाली है !
नफ़रत की दिल पे आज लगी ताली है
दी रोठी सब्जी आज किसी भी न मुझे
यार रही अपनी तो खाली थाली है
जीवन में इतने जुल्म अपनों के झेले
आँखें में रोज़ उदासी की लाली है
चाँद छिपा है वो उल्फ़त का यार कहीं
नफ़रत की आयी वो रातें काली है
वरना पानी में भीगे गे हम दोनो
चल घर जल्दी बारिश आने वाली है
देखा उल्फ़त की नजरों से सबको ही
दिल में न कभी अपनें नफ़रत पाली है
सब्जी बेचकर करता हूँ मैं गुजारा
नोट गया दें कोई वो भी जाली है