आसमान सा बनकर देखो
आसमान सा बनकर देखो

 “आसमान”

( Aasman : Hindi poem )

 

–> आसमान सा बनकर देखो ||
1.आसमान कितना प्यारा, फैला चारो ओर है |
रंग-बिरंगी छटा बटोरे, मेघों का पुरजोर है |
दिन में सूरज किरण लिए, रात में चाँद-सितारे |
दिन मे धूप की गर्मी रहती, रात को मोहक नजारे |
–> आसमान सा बनकर देखो ||
2.बारिष की बूंदें गिरतीं हैं, आसमान लहराता है |
बिजली चमके चम-चम करती, बादाल भी गुर्राता है |
अमृत सी पानी की बूंदें, छोड़ के बादल घटते हैं |
अम्बर नीला रंग-बिरंगा, स्वेत मेघ भी छंटते हैं |
–> आसमान सा बनकर देखो ||
3.अंतरिक्ष समेटे अपने अंदर, दरिया दिल आकाश का |
नव-ग्रहों का दामन थामे, प्रतीक बड़ा विश्वास का |
मनोहर द्रस्य दिखाता रहता, देता शुभ संदेश भी |
कितने भी ऊँचे हो जाओ, अहम् न रखना एक भी |
–> आसमान सा बनकर देखो ||
4.इन्द्र-धनुष को गोद मे अपनी, ममता से बैठाता है |
आँचल की दे छाँव उसे, सत्-रंगों से सजाता है |
मन्द-मन्द शीतल-शीतल, मोहक पवन बिखेर कर |
मस्त हो जाता चंचल मन, आसमान को देख कर |
–> आसमान सा बनकार देखो ||

कवि :  सुदीश भारतवासी

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