अब पहली सी बात नहीं है | Kavita
अब पहली सी बात नहीं है
( Ab pehli si baat nahi hai )
कह देते थे खरी खरी पर, पीठ के
पीछे घात नहीं है।
बदल गया है आज जमाना, अब
पहली सी बात नहीं है।।
ऋषि मुनि और संत महात्मा, मन
फकीरी धरते थे।
मोह माया से दूर रहे वो, कठिन
तपस्या करते थे।
सत्य धर्म के थे रखवाले, अच्छी
शिक्षा भरते थे।
पद था उनका सबसे ऊंचा, पूजा
उनकी करते थे।
आज जेल की शोभा बन रहे, होती
मुलाकात नहीं है।
बदल गया है आज जमाना, अब
पहली सी बात नहीं है।।
मात पिता की सेवा करते, चरणों में
शीश नवाते थे।
वृद्ध अवस्था जब हो उनकी, बैठ के
पैर दबाते थे।
बेटा श्रवण नाम अमर है, तीर्थ भी
करवाते थे।
पिता की आज्ञा मान राम, फिर वन
में समय बिताते थे।
सीता लक्ष्मण साथ निभाते, भरत
के जैसा भ्रात नहीं है।
बदल गया है आज जमाना, अब
पहली सी बात नहीं है।।
संस्कार अब लुप्त हो रहे, सब स्वार्थ
में लीन हुए।
धन के पीछे भाग रहे हैं, रिश्ते आज
मलिन हुए ।
झूठ कपट का ओढके चोला, लालच
के आधीन हुए ।
भ्रष्टाचार बढ़ा रग रग में, बल पौरुष
सब क्षीण हुए।
जांगिड़ सुन गमगीन हुए, बद कर्मों
की जात नहीं है।
बदल गया है आज जमाना, पहले
जैसी बात नहीं है।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )