तीव्र ज्वर में,
भीषण दर्द में।
घर में घर पर ही-
जो कोई अपना पुकारे,
क्या छोड़ देंगे उसे ईश्वर के सहारे?
पीड़ा से भरा वह चीख रहा था,
नजरों से अपनों को ढ़ूंढ़ रहा था।
सभी थे पास,
फर्क ना पड़ रहा था उन्हें ख़ास।
उन्हें यह था पक्का विश्वास,
ज्यादा नहीं बची है अब उसकी सांस।
अनसुनी कर उसकी पुकार-
धुन में अपनी लगे रहे,
मानो उसकी मृत्यु की ही प्रतीक्षा थे कर रहे!
तभी तो उसकी कराह पुकार को अनसुनी किया,
न दवा दिया न दुआ किया?
दुनिया में अपनी रहे खोए,
ऐसा परिचित दुश्मन के भी न होए।
जिन्होंने एक दृष्टि तक न डाली,
कम ना हुई उनके गालों की लाली!
तीमारदारी की बात छोड़िए,
ग्लास एक पानी तक न दिए।
अबोध बालकों ने समझ भर सेवा किया,
ईश्वर ने बस उनकी ही प्रार्थना से ही उसे शिफा किया।
भविष्य उनका न हो अंधकारमय,
तरक्की पर ना हो कोई संशय!
इसलिए हरा पाता है वो अक्सर मौत को , दुश्मनों से भरी फौज को।
भगवान बचाएं ऐसे लोगों से,
ऐसी मानसिकता से।
फिजा में अभी वैसे ही बह रही हैं
मौत की हवाएं,
इंतजाम कर दे ईश्वर सबको कुछ दवाएं,
ताकि लोग संभल जाएं;
बेवक्त किसी को मौत न आ जाए!
भविष्य किसी का न डगमगाए,
न किसी की मंशा काली पूरी हो पाए।
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