अमर
अमर
दुनिया की हर
वस्तु जन्म लेती है
और मरती है
इस मरणधर्मा
जगत में अमर की
कल्पना करने वाला
कोई महान ही
कल्पनाकार होगा
कर्मों के सही से
क्षयोपशम होने पर
मनुष्य भव में
सही से कर्मों का
क्षयकर संपूर्ण
ज्ञान प्राप्त होने
पर मिलन जब
आत्मा से स्वयं का
होता तो आत्मा
के शुद्ध रूप से
फिर कोई भेद
भेद न रहता
ज़िंदगी का सफ़र
आयुष्य जितना
केवली का होता
धर्म का ही
उस अवस्था में
पहुँचने का सदैव
सही से माध्यम होता
फिर आयुष्य पूर्ण
होने के बाद आत्मा
स्वयं के मूल स्वभाव
में अवस्थित हो
अमर हो जाती ।
प्रदीप छाजेड़

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)