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अमरत्व | Amaratva

अमरत्व

( Amaratva ) 

 

माना की
बहुत कुछ खो चुका है आपका
सालों की मेहनत ,सालों की कमाई
बिखर गए हैं , संजते संवरते सपने
अपनों की उम्मीदें ..सब कुछ!!!

तो क्या!रास्ते यहीं खत्म हो गए हैं !?
प्रकृति के विशाल प्रांगण मे
खत्म कुछ नही होता
दुखी,सुख,उपलब्धियां ,अपने पराए
कुछ नही ,कोई नही
समय के गर्भ मे लुप्त अवश्य होते हैं
और अपने समय पर पुन:
लौट भी आते हैं
यही विधान है प्रकृति का..

देखा नही,शाम के बाद सवेरा
सवेरे के बाद शाम
यह चक्र गतिमान रहता ही है….

उठना होगा तुम्हे फिर से
फिर से खड़े करने होंगे स्तंभ
फिर से फहरानी होगी ध्वजा
फिर से दिखानी होगी कामयाबी अपनी…

अमर हो ,अमरत्व से भरे हुए हो
कुछ बूंदे ही तो छलकी हैं
घट रीता कहां हुआ है…

रास्ते कभी खत्म नहीं होते
निकलते हैं रास्तों से ही रास्ते
तुम्हारे रास्ते भी अभी
तुम्हारी प्रतीक्षा मे हैं…

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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