अंधेरा चाहे कितनी कोशिशें करता रहेगा
अंधेरा चाहे कितनी कोशिशें करता रहेगा

अंधेरा चाहे जितनी कोशिशें करता रहेगा

( Andhera chahe jitani koshish karta rahega )

 

 

अंधेरा चाहे जितनी कोशिशें करता रहेगा।

ये मिट्टी का दिया है उम्र भर जलता रहेगा।

 

शहर के पटाखे सब लूट लेगें फिर दिवाली,

गाँव का बम बेचारा हाथ ही मलता रहेगा।

 

तूँ पत्थर है तो हम भी मोम से कमतर नहीं हैं,

जिन्दगी का ये सफर लगता है कि चलता रहेगा।

 

मेरे दुश्मन तुम्हारा शुक्रिया तुम सामने आये,

यहाँ तो दोस्त ही अब बैर भी करता रहेगा।

 

अंधेरा देखकर सूरज भी छिप जाता है शेष,

दीप का दिल है कि वो रात भर जलता रहेगा।

 

 

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कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

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