Antarman

अंतर्मन | Antarman

अंतर्मन

( Antarman )

 

टूट भी जाए अगर, तो जुड़ जाती है डोर
एक गांठ ही है जो कभी, खत्म नहीं होती

मन की मैल तो होती है, दबी चिंगारी जैसे
जलने भी नही देती, बुझने भी नही देती

रोता है अंतर्मन, मुस्कान तो सिर्फ बहाना है
मजबूरी है जिंदा रहना, यही अब जमाना है

पाला था दिल से, लगाया था अपने गले
हुई क्या जरूरतें पूरी, जाकर गैर से मिले

उम्मीद, भरोसा, विश्वास, सब एक दिखावा है
मतलब से मिलना है, न पूछिए क्या हुआ है

सफर मे बनना है , हमसफर भी साथी भी
करते हैं एहसान लोग,बताकर अपना नाम भी

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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