अपनी गलती पर अंधभक्त | Andhbhakti par Kavita
अपनी गलती पर अंधभक्त
( Apni Galti Par Andhbhakt )
सारे ख़ामोश हो जाते हैं,
ढ़ूंढ़ने पर भी नजर नहीं आते हैं।
बोलती हो जाती है बंद,
आंखें कर लेते हैं अंध।
सिर झुकाते हैं,
मंद मंद मुस्कुराते हैं;
दांत नहीं दिखाते हैं!
पहले भी ऐसा होता था…
कह चिल्लाते हैं।
अब तकलीफ क्यों हो रही है
देखो कार्रवाई हो रही है
कानून का राज स्थापित किया जा रहा है
बरखुरदार क्यूं घबरा रहा है
६० साल की बीमारी
६० माह में होगी नहीं ठीक
खुद ही ठोकते रहते अपनी पीठ
कुछ ऐंठते इठलाते हैं
फिर धीरे से मौका देख खिसक जाते हैं।
लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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