
तुम्हारे बिन जहां किस काम का है
( Tumhare Bin Jahan Kis Kam Ka Hai )
लोग कहते हैं कि आराम का है।
तुम्हारे बिन जहां किस काम का है।।
हथेली पर रोज लिखना मिटाना भी,
बस यही काम सुबहो शाम का है।।
फूल तो ले गये ले जाने वाले,
सिर्फ कांटा हमारे नाम का है।।
तनहाई अश्कों की बारिस और घुटन,
यही किस्सा दिल-ए-नाकाम का है।।
बहुत महंगा है उम्मीदों का दिया,
‘शेष’ दिल ही बिका बिन दाम का है।।
कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )
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