अपराध बोध

( Apradh bodh )

 

अपनी आत्मा पर कोई बोझ न कभी रखना |
किसी का दिल तुम्हारी वजह से दु:खे,
ऐसा कोई काम न कभी करना |
कोई इंसान पत्थर दिल न होता यहाँ |
इस बात से इंकार न कभी करना |
मंजू की लेखनी का है यही कहना |
बहुत मुश्किल होता है,
अपनी आत्मा के अपराध बोध से निकलना |
वरना मुश्किल हो जाता तुम्हारा शांति से जीना |
अपनी आत्मा पर अपराधी आत्मा का,
इल्जाम न कभी लगने देना ||

 

मंजू अशोक राजाभोज
भंडारा (महाराष्ट्र)

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