Aughad dani par kavita

औघड़ दानी | Aughad dani par kavita

औघड़ दानी

( Aughad dani )

 

जब कोई ना हो सहारा
रिश्तो के बंधन से हारा
फिरता जब तू मारा मारा
देता एक ही साथ तुम्हारा
औघड़ दानी बाबा प्यारा
जिसने भवसागर को तारा
मिले नदी को जैसे किनारा
वह हरता है संकट सारा
वह जाने कष्ट है हमारा
करता जीवन में उजियारा
जो करे नष्ट अंधियारा
जो पहने मृग की छाला
सजी कंठ नागो की माला
वह मेरा डमरू वाला
वह मेरा डमरू वाला
जो पीए हलाहल हाला
शिव शंभू है मतवाला
डेरा कैलाश पर डाला
डेरा कैलाश पर डाला
शिश बहे गंग की धारा
बेल धतूरा समी चढ़त
पंचामृत अभिषेक करत
नंदी उनके संग फिरत
वो शिव शंभू त्रिपुरारी

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

जब भी कोई काम करो | Kavita jab bhi koi kaam karo

 

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *