औरों से कैसी बातें…?
औरों से कैसी बातें…?
अब आकर तुम्हीं बतादो,
हम गीत कहां तक गायें।
पाकर एकान्त बहे जो,
वे आंसू व्यर्थ न जायें।
इस भांति प्रतीक्षा में ही,
बीतेगीं कब तक घड़ियां।
बिखरेंगी बुझ जायेंगी,
आशाओं की फुलझड़ियां।
मरुथल में आ पहुंची है,
बहती जीवन की धारा।
तुम दयासिंधु हो स्वामी,
किसका है अन्य सहारा।
भौतिक सारे सुख साधन,
अंततः दु:ख बन जायें।
यदि असंतोष हो मन में,
तो प्राण, शान्ति ना पायें।
मैं पथ विभ्रान्त पथिक हूं,
अनजान दिशा को जाता।
है श्रेय प्रेय क्या मेरा,
स्मृति में नहीं है आता।
क्या शुभ है और अशुभ क्या,
है कहां विभेदक रेखा।
पथ दर्शक पद चिन्हों पर,
क्या लिखा, नहीं है देखा?
सत्पथ पर मुझे लगा दो,
क्या जानूं बिना बताये।
चिन्तन में सदा तुम्हारे,
जो जीवन शेष बितायें।
प्रतिपल अनुभव हो ऐसा,
तुम साथ सदा हो मेरे।
होगा प्रकाश निश्चय ही,
होंगे सब दूर अंधेरे।
अब तुम हो मेरे अपने,
औरों से कैसी बातें।
कहना सुनना अब तुमसे,
दिन हों अथवा हों रातें।
मेरे सारे कर्मों में,
तुम रहो सदा ही छाये।
क्या मेरा है इस जग में,
सब में हो तुम्हीं समाये।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)