आज़ादी ऐ वतन का | Ghazal Azadi – e – Watan Ka
आज़ादी ऐ वतन का
( Azadi – e – Watan Ka )
बेशक वरक़ वरक़ पे ही कोई नज़र रहे
उन्वान दास्तान का हम ही मगर रहे
जब तक हैं लाल तेरे यहाँ मादर-ऐ-वतन
फहरेगा चोटियों पे तिरंगा ख़बर रहे
आज़ादी -ऐ-वतन का ये जलता रहे दिया
यारो हवा के रुख पे बराबर नज़र रहे
ऐ नौजवनो देश से बढ़कर नहीं कोई
या रब इसी ख़ुमार में हर इक बशर रहे
क़ुव्वत है बाज़ुओं में हमारे ये किस कदर
सरहद के पार इसका भी खौफ़-ओ-ख़तर रहे
हरदम बना रहेगा ये चैन-ओ-सुकून भी
हर इक बशर यहाँ पे अगर मौतबर रहे
सींचा है हमने अपने लहू से ये गुलसिताँ
इस फ़स्ले-नौबहार में सबकी बसर रहे
रखना है शान अपने तिरंगे की दोस्तो
इस बात का भी हम पे हमेशा असर रहे
है रश्क इस हयात पे थी चार दिन तो क्या
हुब्ब-ऐ-वतन की शान तो यह जानो-सर रहे
है मादर-ऐ-वतन की इनायत का शुक्रिया
साग़र फ़ना के बाद भी होकर अमर रहे
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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