बता दो | Bata Do
बता दो
( Bata Do )
पत्थर दिल तो नहीं हो तुम
वह बर्फ भी नहीं हो
जो पिघल जाए ताप पाकर
बहती प्रवाह मय धारा भी नहीं हो
जो कर दे शीतल समीर को
तब क्या हो तुम
क्या सिर्फ कल्पना मात्र हो मस्तिष्क की
या कोई एहसास हो धड़कन की
या सिर्फ सपने जैसी ही हो
जिसमें कोई स्थिरता ही नहीं
या स्वप्न भंग सी उम्मीद हो तुम
क्या हो तुम
मेरे ख्यालों की क्यों हो एक दिव्या आभासी
क्यों हो मेरे तड़पते हृदय में
प्रभात की बिखरती प्रभा सी
क्यों रहती हो यादों में हरदम
क्यों बन गई हो मेरे लिए सिर्फ एक गम
कौन हो तुम
कुछ तो कहो
आखिर निकल क्यों नहीं जाती
मेरे दिमाग, मेरी सोच ,मेरे हृदय से
किस गुनाह की मेरे सजा हो तुम
कौन हो तुम
बता दो, अब तो बता दो ,
कौन हो तुम
क्यों आई हो मेरे जीवन में
सच-सच बता दो
( मुंबई )