बेटी

बेटी | Beti par kavita

बेटी

( Beti ) 

 

सृष्टि की संचरित संवेदनित आधार है बेटी।
गृहस्थी है समष्टी है वृहद् संसार है बेटी।।
स्वर्ग सा ये घर लगे आने से तेरे।
मधुर किलकारी सुनी अति भाग्य मेरे।

मूर्ति ममतामयी है सहज है संस्कार है बेटी।। गृहस्थी ०

सबको बेटी नियति देती है कहां।
बेटी न होगी तो बेटा है कहां।

घोर अधियारें में भी दीप सा उजियार है बेटी।।गृहस्थी०

बिना बेटी कोख कलुषित सी बने।
शुद्ध हो जाये अगर बेटी जने ।

सुधर जा अब होश में आ गर्भ में न मार बेटी।। गृहस्थी ०

दो घरों का मान है सम्मान है।

बेटी से ही तो तेरी पहचान है।

कर रही है किसलिए फिर आज क्यों चित्कार बेटी।।गृहस्थी०

हर कदम पर आजमायी जा रही है।
बेटी ही आखिर जलायी जा रही है।

बेटी संख्या घट रही क्यों “शेष” सोच विचार बेटी।।गृहस्थी०

 

लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

यह भी पढ़ें :

चल अकेला | Geet chal akela

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *