
शाम ये आज कुछ ढली सी है
( Shaam ye aaj kuch dhali si hai )
शाम ये आज कुछ ढली सी है।
फिर महकती हवा चली सी है।।
लुत्फ मौसम का उठा लो अब तो।
आज गर्दें भी कुछ धुली सी है।।
रूख़ बहारों का फिर ना यूं होगा।
रूत भी होती ये मनचली सी है।।
फिर मिलेगी ना ग़म से यूं राहत ।
आज तो दिल की कली खिली सी है।।
प्यार के बिन “कुमार” सब रिश्ते ।
जिंदगी यूं लगे पहेली सी है।।
लेखक: मुनीश कुमार “कुमार “
हिंदी लैक्चरर
रा.वरि.मा. विद्यालय, ढाठरथ
जींद (हरियाणा)
यह भी पढ़ें :