Jaral Bhojpuri kavita
Jaral Bhojpuri kavita

” जरल “

( Jaral ) 

 

पहिले अपना के झांक
तब दुसरा के ताक
काहे तु हसतारे
कवन कमी तु ढकतारे
घुट-घुट के मरतारे
दुसरा से जरतारे
तोहरों में बा कुछ अच्छा ज्ञान
खोज निकाल अउर अपना के पहचान
मेहनत के बल पे आगे बढ़
जवन कमी बा ओकरा पुरा कर
ना कर सकेले मदद तऽ
ना कर पैर घिचे के कार
आज केहू के तु पैर घिचतारे
काल तोहर पैर घिचेला बा केहू तैयार
छोड़ दऽ अब तु जरल-जुरल
शुरु करऽ अब कर्म के करल
बहुत जल्दी होई तोहरों विकाश
हर जगह होई तोहरों प्रकाश

 

कवि – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
यह भी पढ़ें:-

जंगल | Jungle par Bhojpuri kavita

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here