भुजंग हुआ बदनाम व्यर्थ ही | Kavita Bhujang hua Badnam
भुजंग हुआ बदनाम व्यर्थ ही
( Bhujang hua badnam vyarth hi )
भुजंग हुआ बदनाम व्यर्थ ही अजगर पाले बैठे हैं।
जहर उगल रहा है आदमी घट नाग काले बैठे हैं।
छल छद्मो की भाषा बोले नैन आग बरसते अंगारे।
वाणी के छोड़े तीर विषैले मन ईर्ष्या द्वेष भरे सारे।
सर्पों का सारा विष भीतर अंतर्मन में दबाए बैठे हैं।
रंग बदलते गिरगिट सा लगे सब खार खाए बैठे हैं।
नीलकंठ महादेव शिवशंकर गले में सर्पों की माला।
कैसा तांडव जग में छाया यहां नर हो रहा मतवाला।
स्वार्थ का जहर घुल रहा अपनापन सब भूल रहा।
टूट रही रिश्तो की डोरी नर अभिमान में झूल रहा।
आस्तीन में सर्प पाले जाने कितने भ्रम पाले बैठे हैं।
झूठ कपट सीनाजोरी के फंदे अगणित डाले बैठे हैं।
सद्भावो की बातें थोथी है मतलब की मनुहार करें।
चोर चोर मौसेरे भाई नर बस धन का सत्कार करें।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )