बिन तुम्हारे

बिन तुम्हारे | Bin Tumhare

बिन तुम्हारे

( Bin Tumhare ) 

 

सुनो मेरी कितनी शामें तन्हा निकल गई, बिन तुम्हारे
कितने जाम बिखर गए सर्दी में ,बिन तुम्हारे

लिहाफ भी अब तल्ख लगने लगा है
सर्द दुपहरी भी अब तपने लगी,बिन तुम्हारे

मौसमों ने भी ले ली है कुछ करवट इस तरह
कोहरे की जगह ले ली है अब गर्द ने ,बिन तुम्हारे

महके थे गुल जो खुश्बू से तिरी
पत्ती पत्ती बिखर के रह गई, बिन तुम्हारे

देख खुले गेसू तेरे, खिलती थी तबस्सुम जो लबों पे मेरे
आ अब आ भी जा ,कि कली हो गया जोटा
बिन तुम्हारे…

लेखिका :- Suneet Sood Grover

अमृतसर ( पंजाब )

यह भी पढ़ें :-

रात ठहरी सी | Raat Thehri si

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *