मैंने सीख लिया
मैंने सीख लिया मन के भावों को होंठों पर लाना मैंने सीख लियालफ़्फ़ाज़ी में लोगों को उलझाना मैंने सीख लिया पहले थोड़ा डर लगता था फ़िर बेशर्मी ओढ़ी तोखुलकर हर महफ़िल में आना-जाना मैंने सीख सच्चाई में जीना मुश्किल अच्छे-अच्छे डूब गएभर-भर थाली घोटालों से खाना मैंने सीख लिया शेख़ असल हूँ पीना छोड़ो छूना…