अमरेश सिंह भदौरिया की कविताएं | Amresh Singh Bhadauriya Poetry
चैत दुपहरी चैत की दुपहरी हैगाँव की देह परधूप नहीं,भूख उतरती है। धूल से अँटीपगडंडी के छोर परएक स्त्री झुकी हैसिर पर लकड़ियों का गठ्ठर,पीठ पर बच्चा,और आँखों मेंदिन का अधूरा सपना। उसके घाघरे में हवा नहीं,बस थकान है।हँसी, अब भी गूँथी है ओठों पर,पर उसमें रोटी कीगंध नहीं,संघर्ष का स्वाद है। खेत की मेड़…