अमरेश सिंह भदौरिया की कविताएं | Amresh Singh Bhadauriya Poetry

अमरेश सिंह भदौरिया की कविताएं | Amresh Singh Bhadauriya Poetry

चैत दुपहरी चैत की दुपहरी हैगाँव की देह परधूप नहीं,भूख उतरती है। धूल से अँटीपगडंडी के छोर परएक स्त्री झुकी हैसिर पर लकड़ियों का गठ्ठर,पीठ पर बच्चा,और आँखों मेंदिन का अधूरा सपना। उसके घाघरे में हवा नहीं,बस थकान है।हँसी, अब भी गूँथी है ओठों पर,पर उसमें रोटी कीगंध नहीं,संघर्ष का स्वाद है। खेत की मेड़…

ये गूंगी शाम

ये गूंगी शाम

ये गूंगी शाम ये गुंगी शाम मेरे कानों में कुछ कहती है, तु है कहीं आसपास ये अहसास मुझे दिलाती है,बेशक तू मुझे छोड़ गया, वादा अपना तोड़ गया, किया था वादा तूने ता-उम्र साथ निभाने का, हर ग़म मेरा बांट कर मुझे खुशी के फूलों की लड़ियां दिखाने का, दे गया तू ग़म उम्र-भर…

जीवन-भाग-2

जीवन-भाग-2

जीवन-भाग-2 हारना कब जितनाकब मौन रखना कबबोलना कब संतुलितहोंना कब विनम्रतापूर्वकपेश आना आदि – आदितब कहि जाकर हमइस जीवन रूपी नोकाको पार् पहुँचाने कीकोशिश कर सकते हैअतः हमनें आवेश मेंअपने आप को समनही रखा और अनियंत्रितहोकर बिना सोचें आक्रमकहोकर कुछ गलत सब्दोंका प्रयोग कर दिया तोइस जीवन रूपी नोका कोटूटने से वह डूबने से कोईभी…

जीवन-भाग-1

जीवन-भाग-1

जीवन-भाग-1 हम अपने जीवन मेंचले जा रहें है कोईदौड़े जा रहे तो कोईदिशाहीन से भटक रहे हैआखिर हम सब जाकहां रहे हैं? मंज़िल कीतलाश है राह दिखती नहींराह तो है पर मंजिलनिश्चित नहीं राह औरमंज़िल दोनों है पर गति नहींआखिर क्या करे ?कैसी ये पहेली है किजीवन जीते सब हैंपर विरले ही जीवनअपना सार्थक जीते…

प्रदीप छाजेड़ जी की रचनायें

प्रदीप छाजेड़ जी की रचनायें

मजबूत मन, सफल जीवन हम देख सकते है कि जिसका मन मजबूत होता है उसका जीवन सफल होता है । वह जिस तरह लोहे को आग में तपाकर चोट मार-मार कर आकार दिया जाता है और मजबूत हो जाता है, वैसे ही हमारा मन भी कठिनाइयों से गुजर कर जीवन की चुनौतियों का दृढ़ता से…

तेरी याद

तेरी याद – मेरी कविता

तेरी याद – मेरी कविता सुनो दिकु… आज जब तेरी खबर मुझ तक आई,आँखें भीग गईं, रूह मुस्काई।सुना — आज भी वही जज़्बा है,दिकुप्रेम तेरे दिल में भी ज़िंदा है। रोक रखा है तुझे वक़्त और क़समों ने,तेरे फ़र्ज़ और रिश्तों ने।तू चाहकर भी कुछ कह नहीं पाती,पर तेरी ख़ामोशी मुझसे बात है कर जाती।…

मुक्तिपथ

मुक्तिपथ

मुक्तिपथ चल पड़ा हूँ मैं,बंधनों की राख से उठकर,स्वप्नों के नभ को छूने जहाँ विचार, वाणी और विवेकस्वाधीन साँसें लेते हैं। नहीं चाहिए अबवह शांति,जो चुप्पियों की बेड़ियों में बंधी हो,न वह प्रेम,जो स्वार्थ के कटघरों में सज़ा काटे। मैं चाहता हूँएक उजासजो भीतर से फूटे,एक सत्यजो भय से नहीं, आत्मा से उपजे। संस्कारों की…

अद्वितीय

अद्वितीय

अद्वितीय दर्शन की भाषा मेंकहा जा सकता हैदूसरा कोई नहींव्यवहार की भाषामें कहा जा सकता हैअकेला कोई नहींअपेक्षित सुधार व परिस्कार हो,और उसके हर कदम के साथसंतुलन का अनोखा उपहार होबाहरी दुनियां का भ्रमणतो केवल संसार समुद्र मेंआत्मा का भटकन है वहइसी में क्यों पागल बनाहमारा यह मन और जीवन हैजिस दिन हमें अन्तर केआनन्द…

ज़िंदगी

ज़िंदगी

ज़िंदगी तेरे बिना ये साँझ भी वीरान लगी,हर सुबह भी अब तो अनजान लगी,मैं मुस्कराया पर दिल रो दिया,दिकु, तूने इतनी गहराई से क्यों प्रेम किया? तन्हा हुआ तो वक़्त भी थम गया,हर रास्ता जैसे मुझसे छिन गया,जब तू थी, हर मोड़ पे तूने हौंसला दिया,दिकु, तूने इतनी गहराई से क्यों प्रेम किया? बातें अधूरी,…

वाणी और पानी -ध्रुव-2

वाणी और पानी -ध्रुव-2

वाणी और पानी – ध्रुव-2 वह ठीक उसी तरहअसंयमित बहते हुएपानी से बाढ़ कीत्रासदी, भूस्खलनआदि जैसे प्राकृतिकआपदाएं आ जाती हैवह गांव कस्बे सब जलसमाधि में विलीन हो जाते हैंऔर साथ में धन–जन आदिकी भी भारी क्षति होती हैइसलिए यह जरूरी हैकि पर्यावरण का संतुलनसही से बनाए रखें औरअसंयमित बहते हुएपानी और बिनाविचारे बोली वाणीदोनों पर…