वो मुझे मुज़रिम समझ कर यूंँ सज़ा देता रहा | Shambhu Lal Jalan Nirala Ghazal
वो मुझे मुज़रिम समझ कर यूंँ सज़ा देता रहा ( Wo mujhe mujrim samajh kar yoon saza deta raha ) वो मुझे मुज़रिम समझ कर यूंँ सज़ा देता रहा होठों तक ला ला के वो साग़र हटा देता रहा। बैठता है पास मेरे यूंँ तो वो हर रोज़ ही जब भी छूना चाहा तो…