चले जाओ भले गुलशन बिना गुल के मजा क्या है

चले जाओ भले गुलशन बिना गुल के मजा क्या है

चले जाओ भले गुलशन बिना गुल के मजा क्या है

 

 

चले जाओ भले गुलशन बिना गुल  के मजा क्या है।

खिज़ा का है नहीं मौसम बहारों की फजा क्या है।।

 

अभी से सीख लो जीना यहां अपने  लिए यारो।

समझ में आ गया हो ग़र गलत क्या है बजा क्या है।।

 

बना है मोह दुनिया में सभी कुछ त्याग कर भी ग़र।

जरा  सोचो अकेले में कि फिर तूने तजा क्या है।।

 

वही होता ज़माने में जो उसने सोच रखा है।

लगेगा ठीक फिर सब कुछ समझ उसकी रजा क्या है।।

 

न कोई ज्ञान है जिसको कलाओ में किसी का भी।

रहेगा जानवर जैसा यूं जीने में मजा क्या है।।

 

“कुमार” बदनाम  जीते जो ज़माने की निगाहों में।

मरा उनको समझना तुम बङी इस से सज़ा क्या है।।

 

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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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