उन् अहल-ए-वफ़ा का कहानी लिए
एक पाक महफ़िल-ए-दानिश में
पहले पहल जब हुई मुलाक़ात
बातें कम और आँखें ज्यादा बोलेंगे
उन् अहल-ए-वफ़ा का कहानी लिए आँखें झपक रहा था
उन्हें क्या मालूम किन कशिशो से ये शफ़क़ गुज़र रहा था
वो सुरों की अनसुने कहानी की जब फलसफा सुरु हुई
लगता था कोई ख़सारा में बैठे, खुद इज़ाफ़ा को जन्म दे रहा था
अस्रार तो अस्रार होते है
जब सुरों की कहानी अक़ीदा के गले चढ़ गयी
रफ्ता रफ्ता अब कोई महदूद-ए-ख़म टूटेंगे
हौले हौले से हमराज़ होते हुए
लर्ज़िश-ए-लब सब अस्रार खोलेंगे
वज़े की वजूद मिले अगर तो सब बोलेंगे
‘बर्षा’ एक किरदार पूरे शामों की कहानी का
संगीत की सुरो में छिड़ी हुई उन् फनकारी का
सहाददत रहा ‘अनंत’ वहां पर चलने वाला हर एक ज़ुबानी का
शायर: स्वामी ध्यान अनंता