समावेशी विकास की अवधारणा
समावेशी विकास की अवधारणा

निबंध : समावेशी विकास की अवधारणा

( Concept of inclusive development : Essay In Hindi )

समावेशी विकास एक व्यापक अवधारणा है। इसका प्रमुख उद्देश्य देश के विकास प्रक्रिया में सभी नागरिकों को शामिल करने के साथ-साथ उनसे मिलने वाले लाभों की सत प्रतिशत पहुंच भी सुनिश्चित उन तक करना है।

यानी कि समावेशी विकास की अवधारणा में सभी भागीदारों के समान अवसर एवं समान लाभ पर केंद्रित है। यह विकास की पोषणीय रणनीत है जो आर्थिक समृद्धि को नीचे की ओर ले जाकर यानी कि विकास दर का रिसाव नीचे की ओर बनाए रखकर उस वितरण मूलक सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करती है। जिसमें भेदभाव की गुंजाइश नहीं रहती।

सच्चाई यह है कि हमारे देश में व्यापक निर्धनता, बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समावेशी विकास के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है।

क्योंकि इसमें लाभ वंचितों तक पहुंचता है। भारत में आर्थिक समृद्ध को पर्याप्त रूप से समावेशित बनाने की आवश्यकता को देखते हुए समावेशी विकास को भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे चर्चित शब्द बना दिया गया है।

समावेशी विकास अपने विस्तृत आकार में सामाजिक न्याय की अवधारणा का भी पोषण करता है, जिसे भारत के संविधान में प्रमुखता से मान्यता दी गई है।

बता दें कि विश्व भर में आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण की नीतियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 1961 में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन की स्थापना की गई थी। इस संगठन ने भी अनेक आर्थिक चुनौतियों का सामना किया और नए उपागमन के रूप में सामाजिक विकास को महत्वपूर्ण बताया है।

समावेशी विकास के सामाजिक बदलाव एवं सामाजिक प्रगति की समग्र अवधारणा को ध्यान में रखकर भारतीय परिपेक्ष में यह कहा जा सकता है कि यह एक ऐसी विकास प्रक्रिया की आवश्यकता है जो अधिक समावेशी हो।

जो गरीबी में अधिक तेजी से कमी लाने के लिए गरीबों की आय में वृद्धि करें, जो अच्छे गुणवत्ता वाले रोजगार का विस्तार करें और जनसंख्या के सभी वर्गों के लिए स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी आवश्यक वस्तुओं तक पहुंच को सुनिश्चित करें।

सामान्य रूप से किसी विकास को समावेशी विकास तब माना जाता है जो विकास के साथ-साथ सामाजिक अवसरों का भी समान वितरण हो। अर्थात हम कह सकते हैं कि समाज के विकास के तीन अनिवार्य घटक निर्धारित हैं

1) सेवाओं एवं मूल्यों का समान वितरण

2) अवसरों की समानता मुलक उपलब्धता

3) विकास द्वारा प्रत्येक व्यक्ति का सशक्तिकरण। इन्हीं के इर्द-गिर्द सामाजिक विकास के समस्त प्रक्रिया है घूमती रहती है।

भारत में समावेशी विकास की पहल जारी है।लेकिन बेहतर परिणाम के लिए स्वास्थ्य स्पर्धा, नवाचार एवं सृजनशीलता को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है।

साथ ही वित्त एवं ऊर्जा के क्षेत्र में मितव्ययिता को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। समावेशी विकास के सपनों को साकार करने के लिए हमें श्रमिक एवं कर्मियों के कल्याण पर ध्यान देना होगा।

वंचित वर्गों के लिए अवसर की उपलब्धता को बढ़ाना होगा। शोध एवं विकास को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। पर्यावरण संरक्षण एवं अनुकूलन की पहल करने की जरूरत है।

समावेशी विकास के लिए उद्योग जगत को भी आगे आना होगा और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करना होगा। विलासिता पर किए जाने वाले व्यय को कम कर धन को समाज कल्याण में लगाना होगा। साथ ही उद्योग जगत से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह अपने उत्पादों की वाजिब कीमत रखकर।

अपने यहां कार्यरत श्रमिकों एवं उनके परिवारों के लिए कल्याणकारी बनाएं पर्यावरण संरक्षण व अनुकूलन के लिए पहल करें। वह अनुसंधान एवं शोध कार्यों को प्रोत्साहित कर समावेशी विकास को प्रभावी बनाने में योगदान दें।

भारत के विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था को सार्थक तभी बनाया जा सकता है जब इसका लाभ समाज के निर्धन तक पहुंचे एवं परिवर्तन प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचे। इसके लिए भारतीय विकास को समावेशी स्वरूप दिए जाने की जरूरत है।

हम इस दिशा में आगे भी बढ़ रहे हैं जल्दी भारत विकास को समावेशित बनाकर सामाजिक मूल्यों को स्थापित करने में कामयाब हो सकेगा।

लेखिका : अर्चना  यादव

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