दया धर्म का मूल है | Kavita
दया धर्म का मूल है
( Daya dharm ka mool hai )
दया भाव जीवो पर रखे दया धर्म का मूल है
दीन दुखी निर्धन सताना मानव भारी भूल है
दया करें उन लाचारों पर रोगी और बीमारों पर
जहां बरसा कहर टूटकर हालातों के मारो पर
आओ जरा संभाले उनको पीड़ा से निकालें उनको
जिनका सबकुछ लुट चुका बांध सब्र का टूट चुका
जनसेवा को हाथ बढ़ाना मानवता का उसूल है
संकट समय साथ निभाना दया धर्म का मूल है
अपनापन अनमोल सलोना स्नेह सुधारस धारा
प्यार के मोती लुटा जग में बांटें मधुर प्रेम प्यारा
जहां दया और मानवता सुख की गंगा बहती है
आठों पहर अमृत बरसे सदा भवानी रहती है
जीव जगत से प्रेम निभाए संकट मिटे समूल है
बेजुबान सब दया के पात्र दया धर्म का मूल है
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )