दीपोत्सव | Deepotsav
दीपोत्सव
( Deepotsav )
कातिक मास अमावस रैन बिना घर कंत जले कस बाती।
खेतन में पसरी बजरी डगरी बहु चोर फिरें दिन राती।
गावत गान पिटावट धान कटी उरदी कृषिका पुलकाती।
घात किए प्रिय कंत बसे परदेश न भेजत एकहुँ पाती।।
चंचल चित्त चलै चहुँ ओर गई बरखा अब शीत समानी।
छाछ दही घर की बिसरे घृत बेसन व्यंजन माखन पानी।
जोहत बाट न नींद लगै कस आवत गेह न मोर परानी।
झांसन में कतहूँ पड़िगै सुधि भूल गये सब बात पुरानी।।
टीस उठे हिय में तगरी अपराध न नाथ बतावत आई।
ठेसर देत पड़ोसिन रोज कहे विष बैन न जात सहाई।
डोलत चक्कर आवत है तन छीन भई सँवरान गुराई।
ढांढ़स नाहि बँधै मन में तिउहार पै नैनन नीर बहाई।।
तेल भरे बहु दीप सजे हमकौ अँधियार लगै जग माहीं।
थापन पै मृदु ढोल बजै चमकै चकरी बहु बिम्ब लखाहीं।
दीप कतार हजार लगी भरतार बिना नहिं मोहि सुहाहीं।
धीरज के तुम शेष अधारहिं संगहि दीप जलावत नाहीं।।